Friday 14 April 2017

"चाय की दुकान" और बेटी " / शैलेश सिंह


सोनू के होठ काँप रहे थे। दाँत किटकिटा रहे थे। ठण्ड का मौसम था ही ऐसा । रात के ग्यारह बज रहे होंगे जब वो अपनी बीबी और माँ को लेकर गांव के जीप से शहर के सरकारी अस्पताल में आया था।। 
बीबी की तबियत अचानक में बिगड़ गयी थी । पीड़ा से चीख रही थी वो । माँ का आदेश और बीबी की चीत्कार ने उसे शहर लाने पर विवश कर दिया था वर्ना इलाज तो गांव में भी था । उसने अपनी बीबी को फटाफट अस्पताल में भर्ती करवाया ।
डॉक्टर ने आनन फानन में इलाज शुरू कर दिया। और फिर एक घंटे की मसक्कत के बाद नर्स ने आकर खुशखबरी सुनाई ।
बधाई हो आप बाप बन गए। सोनू तो फूला न समाया। और तुरंत माँ को मिला। पर माँ के चेहरे पर मायुसी थी। मौन थी वो। सोनू ने पूछा क्या हुआ माँ तू खुश नही है। माँ ने कुछ नहीं बोला।
माँ तू जवाब तो दे..... माँ ने कुछ जवाब नहीं दिया । सोनू खुद अपनी बीबी के पास गया और देखा की उसकी बीबी नेहा ने एक फूल सी बच्ची को जन्म दिया है। नर्स ने बताया बच्ची अभी कमजोर है।। कुछ दिन तक अस्पताल में रखना पड़ेगा।।
सोनू ने हां में सिर हिलाया और माँ क्यों मौन है उसे सारा माजरा समझ में आ गया । माँ तो बेटा चाहती थी चिराग आएगा , चिराग आएगा यही रट लगाये रहती थी। सोनू ने माँ को उस समय कुछ नहीं कहा।। बस भागा दौड़ी में लग गया। दवा लाना। खाना लाना । चाय लाना।।
सुबह के चार बज गए होंगे उसे ये सब करते हुए। नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी। माँ सो गए थी। नेहा और बच्ची भी। अचानक उसके कदम अस्पताल के बाहर चल पड़े । अस्पताल के सामने सड़क पार करके चाय की दुकान थी। उसने चाय वाले चाचा से एक चाय मांगी और कुर्सी पर बैठ गया। उसके और चाचा के अलावा कोई भी नहीं था दुकान पे।।
सोनू को चाय,खाना,दवा के अलावा और कोई काम न था । पर वो जब भी असहज महसूस करता चाय की दुकान पर आ जाता और चाय पीने के साथ साथ चाचा को देखते रहता। चाचा की उम्र यही कोई सत्तर या पचहत्तर साल की होगी। उसने इन पांच सात दिनों में चाचा के अलावा और किसी को भी नहीं देखा जो चाचा की मदद कर सके। चाचा पूरी रात कंपकपाते हाथो से चाय बनाते । बर्तन धोते । ठण्ड की वजह से सिकुड़ से गए हाथो को वो कभी कभी भट्टी में हाथ सेंक लेते ।फिर एक रात सोनू ने चाचा को पूछ लिया ,चाचा क्या आपका कोई नहीं।।।
चाचा की आँखों से आंसू निकल आये और वो धीरे से बोले - मेरा एक बेटा है ।
तो वो आपके साथ नहीं रहता ?
नहीं बेटा वो बाहर रहता है । उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा किया। डॉ बनाया । खुद पेट काटकर खिलाया और आज वो हमसे दूर रहता है। कभी आता भी नहीं।
सोनू को अफ़सोस हुआ । ऐसा भी हो सकता है क्या ! चाचा का दिल बैठ गया था। सोनू ने चाचा की पीठ सहलाई और कहा - चाचा आप महान हो । शान्त हो जाइये ऐसे कपूत जन्म न ले तो ही अच्छा । मेरे बगिया में भी बेटी आयी है ।
सोनू की आँखों में दो प्रकार के आंसू थे। एक चाचा के दुःख का और दूसरा उसकी बेटी के जन्म की ख़ुशी का। ।।

"माँ " : शैलेश सिंह

जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गयी।
तेरी खुशियाँ हे माँ।
सब रिश्तों की तुझको चिंता
पर तेरे लिए क्या माँ।
सुबह से शाम फिर रात फिर सुबह
बदल जाती थी।


..... माँ फिर भी नहीं घबराती थी।
हम थोड़े काम कर लिए तो ।
माँ कहती आराम कर ले बेटा थक गया तू।
क्या हमने कभी माँ से पूछा।
तुम थक सी गयी हो हे माता।
ला तेरे बरतन धो दू।
ला थोड़ी रोटियां बना दू।

हे माँ तेरे पैर दबा दू।।
फिर हँस कर माँ कहती बेटा ...
तू बड़ा हो गया ... अपने पैरो पर खड़ा हो गया।
ये काम तुझे शोभा न देगी।
क्या पूछा कभी हमने हे माँ
तू भी तो बूढी होने लगी।

नव-जन के विभाग